आदि शंकराचार्य भारतीय दर्शन के महानतम आचार्य और अद्वैत वेदांत के मुख्य प्रवर्तक माने जाते हैं। उनका जन्म 788 ईस्वी के आसपास केरल के कालड़ी गाँव में हुआ था। उनका जीवन भारतीय धार्मिक और दार्शनिक चेतना को पुनर्जीवित करने वाला रहा।
जीवन परिचय
शंकराचार्य का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। कम उम्र में ही उन्होंने वेद, उपनिषद, गीता और अन्य शास्त्रों का अध्ययन कर लिया। मात्र 8 वर्ष की आयु में ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश किया और 16 वर्ष की आयु में उन्होंने सन्यास ले लिया। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने भारत भ्रमण किया और वेदांत के अद्वैत सिद्धांत का प्रचार किया।
अद्वैत वेदांत का सिद्धांत
उनका मुख्य सिद्धांत था – "ब्रह्म ही सत्य है और संसार मिथ्या है"। उनके अनुसार आत्मा (आत्मन) और परमात्मा (ब्रह्म) एक हैं। उन्होंने मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य आत्मज्ञान को माना और माया को इस भौतिक संसार की भ्रमपूर्ण शक्ति कहा।
धार्मिक योगदान और मठ स्थापना
आदि शंकराचार्य ने भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक एकता स्थापित की। उन्होंने चार प्रमुख मठों की स्थापना की:
- बद्रीनाथ – उत्तर में
- द्वारका – पश्चिम में
- पुरी – पूर्व में
- रामेश्वरम – दक्षिण में
रचनाएँ
उन्होंने वेदांत के कई ग्रंथों पर भाष्य लिखे जिनमें प्रमुख हैं:
- ब्रह्मसूत्र भाष्य
- भगवद गीता भाष्य
- उपनिषद भाष्य
निष्कर्ष
आदि शंकराचार्य ने भारत की आध्यात्मिक यात्रा को नई दिशा दी। उन्होंने वेदांत दर्शन को पुनर्जीवित किया और सनातन धर्म की अद्वैत परंपरा को स्थापित किया। मात्र 32 वर्ष की आयु में अपने जीवन कार्य को पूर्ण कर उन्होंने महासमाधि ली, परंतु उनकी शिक्षाएँ आज भी जगत को मार्ग दिखा रही हैं।