जातकर्म संस्कार

जातकर्म संस्कार

जातकर्म संस्कार

जातकर्म संस्कार

जातकर्म संस्कार भारतीय संस्कृति में नवजात शिशु के जन्म के बाद किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह संस्कार शिशु के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए शुभ शुरुआत का प्रतीक है। यह संस्कार 16 संस्कारों में तीसरा है और जन्म के तुरंत बाद या कुछ दिनों के भीतर किया जाता है।

जातकर्म संस्कार का उद्देश्य

  • नवजात शिशु का स्वागत और शुद्धि। शिशु के जन्म के बाद उसे समाज में एक नया सदस्य स्वीकार किया जाता है।
  • स्वस्थ जीवन की प्रार्थना। शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए प्रार्थना की जाती है।
  • सुसंस्कारों का प्रारंभ। जन्म से ही शिशु के भीतर आध्यात्मिक और नैतिक संस्कार डालने की प्रक्रिया।

संस्कार की प्रक्रिया

  • हवन और पूजा पुरोहित द्वारा मंत्रोच्चार और अग्नि के समक्ष हवन किया जाता है। शिशु और माता की रक्षा के लिए देवताओं का आह्वान किया जाता है।
  • मधु और घृत का सेवन नवजात के होंठों पर शुद्ध घी और शहद का स्पर्श किया जाता है। यह प्रक्रिया शिशु के जीवन में मिठास और स्वास्थ्य का प्रतीक है।
  • स्वागत मंत्र शिशु के कान में पिता या पुरोहित द्वारा विशेष वैदिक मंत्र फूंके जाते हैं। ये मंत्र शिशु के स्वस्थ और गुणवान जीवन की प्रार्थना होते हैं।
  • पिता का आशीर्वाद पिता शिशु को गोद में लेकर अच्छे गुण, स्वास्थ्य और लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं।
  • शिशु की पहचान शिशु का नामकरण संस्कार अलग से होता है, लेकिन जातकर्म संस्कार में उसके जन्म की पुष्टि और स्वागत किया जाता है।

जातकर्म संस्कार का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व

  • आध्यात्मिक महत्व यह संस्कार शिशु के जीवन में धर्म, नैतिकता और अध्यात्म का बीज बोता है।
  • सामाजिक महत्व यह परिवार और समाज के बीच नवजात शिशु के स्वागत और उसके प्रति जिम्मेदारियों की शुरुआत को दर्शाता है।

संस्कार का प्रतीकात्मक अर्थ

जातकर्म संस्कार यह सिखाता है कि शिशु के जीवन की शुरुआत से ही उसे सुसंस्कार और प्यार से पोषित करना चाहिए। यह संस्कार जीवन का एक पवित्र आरंभ है, जो माता-पिता और परिवार के लिए एक आनंदमय अनुभव होता है।