स्वामी शिवानंद (1887–1963) आधुनिक भारत के महान संत, योग गुरु और आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे। उन्होंने योग, आध्यात्मिक जीवन और आत्मविकास को सरल, व्यावहारिक और सबके लिए सुलभ बनाया। उनका जीवन सेवा, साधना और भक्ति का अनोखा संगम था।
प्रारंभिक जीवन
स्वामी शिवानंद का जन्म उत्तर प्रदेश के तामिल ब्राह्मण परिवार में कृष्णनंदन श्रीवास्तव के रूप में हुआ। युवावस्था में वे डॉक्टर बने और कुछ समय तक मलयेशिया में चिकित्सक के रूप में कार्य किया। सेवा भाव और मानव कल्याण की भावना उन्हें आध्यात्मिक मार्ग की ओर ले गई।
संन्यास और साधना
भारत लौटकर उन्होंने ऋषिकेश में कठोर तपस्या और साधना आरंभ की और "स्वामी शिवानंद" नाम से संन्यास ग्रहण किया। उनका जीवन मंत्र था:
"Serve, Love, Give, Purify, Meditate, Realize."
(सेवा करो, प्रेम करो, दान दो, शुद्ध बनो, ध्यान करो और ईश्वर का साक्षात्कार करो)
योग और दर्शन
उन्होंने योग को केवल शारीरिक अभ्यास नहीं माना बल्कि जीवन जीने की कला बताया। उन्होंने कहा:
"योग ही जीवन है" — क्योंकि योग शरीर, मन और आत्मा को जोड़ता है। उनका मानना था कि स्वस्थ्य जीवन, संयमित आहार, प्राणायाम और ध्यान से मनुष्य आत्मिक शांति पा सकता है।
उनकी शिक्षाएँ
- सेवा ही सच्चा धर्म है।
- भक्ति, ज्ञान और कर्म — तीनों मार्ग आत्मिक उन्नति के साधन हैं।
- शुद्ध जीवन, सरल जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है।
- प्रेम और करुणा से परमात्मा की प्राप्ति होती है।
योग और साहित्य योगदान
उन्होंने 200 से अधिक पुस्तकें लिखीं जिनमें प्रमुख हैं — "योग शिक्षा", "प्रेरणा के स्रोत", "डिवाइन लाइफ", "आत्मिक जीवन"। ये आज भी दुनिया भर में योग seekers के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
डिवाइन लाइफ सोसाइटी
1936 में उन्होंने ऋषिकेश में डिवाइन लाइफ सोसाइटी की स्थापना की, जो आज भी विश्वभर में योग और आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र है।
निधन
14 जुलाई 1963 को उन्होंने देह त्याग दी, परंतु उनकी शिक्षाएँ आज भी करोड़ों लोगों को आत्मिक विकास और सेवा के मार्ग पर प्रेरित करती हैं।
स्वामी शिवानंद ने जीवन और आध्यात्मिकता को सरल भाषा में समझाया। उनका जीवन मानवता और आध्यात्मिक चेतना का अमर उदाहरण है।