संस्कार की प्रक्रिया
- शुभ तिथि और मुहूर्त नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के 11वें दिन या परिवार की सुविधा के अनुसार किसी शुभ दिन किया जाता है।
- पूजा और हवन पुरोहित द्वारा देवताओं की पूजा और हवन किया जाता है। शिशु के सुखद और स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है।
- नाम का चयन शिशु का नाम ज्योतिष के आधार पर राशि और नक्षत्र के अनुसार चुना जाता है। परिवार के बुजुर्गों या माता-पिता की पसंद से भी नाम रखा जाता है।
- नाम की घोषणा पिता या पुरोहित शिशु के कान में तीन बार नाम फूंकते हैं। इसके बाद सभी परिवार और समाज के सामने शिशु का नाम घोषित किया जाता है।
- उपहार और आशीर्वाद नामकरण के बाद मेहमान और परिवार के सदस्य शिशु को आशीर्वाद और उपहार देते हैं।
नामकरण संस्कार का सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व
- सामाजिक महत्व यह संस्कार शिशु को समाज का हिस्सा बनाने और उसे परिवार की परंपरा में शामिल करने का माध्यम है।
- आध्यात्मिक महत्व नामकरण संस्कार शिशु के जीवन की आध्यात्मिक यात्रा और शुभता की शुरुआत का प्रतीक है।
संस्कार का प्रतीकात्मक अर्थ
नाम केवल पहचान का माध्यम नहीं, बल्कि यह शिशु के व्यक्तित्व और उसके जीवन के उद्देश्यों को दर्शाने वाला प्रतीक है। नामकरण संस्कार भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपराओं और परिवार के मूल्यों को मजबूत करने का महत्वपूर्ण माध्यम है