स्वामी रामकृष्ण परमहंस (1836–1886) भारतीय आध्यात्मिक जगत के महान संत, योगी और ईश्वरभक्त थे। उनका जीवन गहरी साधना, निष्काम भक्ति और दिव्य अनुभवों से भरा हुआ था। वे मानते थे कि ईश्वर की अनुभूति ही मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।
प्रारंभिक जीवन
रामकृष्ण परमहंस का जन्म पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर गांव में एक धार्मिक और साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनका असली नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। बचपन से ही उनका मन आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित था और वे मंदिरों तथा भक्ति गीतों में मग्न रहते थे।
साधना मार्ग
वे दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी बने और वहीं उन्होंने कठोर साधना आरंभ की। उन्होंने विभिन्न मार्ग अपनाकर ईश्वर की अनुभूति की—भक्ति योग, वेदांत साधना, तांत्रिक साधना, इस्लाम और ईसाई साधना का भी अभ्यास किया। उनका निष्कर्ष था:
"जितने मत, उतने ही पथ — सब ईश्वर तक ले जाते हैं।"
मुख्य शिक्षाएँ
- ईश्वर की प्राप्ति मन की पवित्रता और सच्ची भक्ति से होती है।
- सब धर्म सत्य हैं और ईश्वर तक पहुँचाते हैं।
- प्रेम, करुणा और सत्य जीवन का आधार हैं।
- मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है।
स्वामी विवेकानंद पर प्रभाव
उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद ने उनके संदेशों को आगे बढ़ाया और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। विवेकानंद ने कहा था:
"जो कुछ मैं हूँ, वह स्वामी रामकृष्ण की कृपा का ही फल है।"
निधन और विरासत
16 अगस्त 1886 को उन्होंने देह त्याग किया, परंतु उनके विचार आज भी विश्वभर में आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि ईश्वर का अनुभव प्रेम, भक्ति और साधना से ही संभव है।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस आध्यात्मिकता के सजीव उदाहरण थे—उनका जीवन सच्चे साधक और संत का प्रतीक है।